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Home ज्योतिष

गंगा के अवदान के प्रति श्रद्धा और समर्पण का पर्व है गंगा सप्तमी

Er. S.K. Gupta by Er. S.K. Gupta
14/05/2024 at 7:25 AM IST
in ज्योतिष
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लेख-प्रो. आर एन त्रिपाठी समाजशास्त्र विभाग, बीएचयू

 

वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को मनाई जाने वाली ‘गंगा सप्तमी’ सनातन मता वलम्बियों का एक पवित्र पावन पर्व है।यह पर्व मध्यानकाल अर्थात दोपहर में सर्वत्र गंगा पूजन की विधियों के साथ मनाया जाता है इसे कमल सप्तमी भी कहते हैं। माना जाता है की गंगा सप्तमी में गंगा का पूजन करने से मां गंगा व्यक्ति सबसे बड़ा से बड़ा पाप समाप्त कर देती हैं इसलिए इसे शास्त्रों में ‘महाअघ तारकम’ कहा गया है।ऋण,व्यसन,रोग दोष आदि से मुक्ति व्यक्ति को मिल जाती है।इनके पूजन से अन्नं धन-धान्य सभी में अपार वृद्धि होती है और मनुष्य के जीवन में यदि किसी भी प्रकार का मंगल दोष हो तो गंगा सप्तमी के दिन गंगा पूजन करने से सब प्रकार के मंगल दोष और अनिष्ट नष्ट हो जाते हैं।अब प्रश्न यह है की गंगा सप्तमी इस दिन मनाई क्यों जाती है? तो इसके पीछे मुख्य रूप से गंगा सप्तमी मनाने का उद्देश्य है कि वैशाख मास की शुक्ल पक्ष सप्तमी को भूत भावन भगवान शिव की जटाओं से मां गंगा ने पृथ्वी की तरफ अपनी यात्रा का प्रारंभ किया इसी दिन गंगा का पृथ्वी पर अवतरण हुआ । गंगा भगवान शंकर की जटाओं से जब हर-हर करती हुई निकली तो उनके साथ सात धाराएं बन गई तीन धाराएं नलिनी हलादिनी व पावनी पश्चिम में, सीता सुबुक्षु सिंधु एवं सातवीं धारा भागीरथी है। कूर्म पुराण में इसका विधिवत वर्णन है कूर्म पुराण में आता है कि सीता अलकनंदा आदि चार धाराएं गंगा की बहती हैं स्वर्ग में, मंदाकिनी है और धरा पर जो हम धारा देखते हैं वह गंगा है और पाताल में भोगवती के रूप में प्रवाहित होती हैं। अगर व्यावहारिक तौर पर देखें तो भारत की जो ऋषि और कृषि संस्कृति है उसके पीछे सबसे बड़ा अवदान इन्हीं नदियों का है। गंगा अपनी सहायक नदियों के साथ पूरे उत्तर भारत को कृषि की दृष्टि से और आध्यात्मिक की दृष्टि से बहुत ही समुन्नत करती हैं गंगा के दोआबे में जितनी फैसले पैदा होती हैं उतनी फैसले पूरे देश में कहीं नहीं पैदा होती।ऊपज की दृष्टि से देखें अथवा फसलों की गुणवत्ता की दृष्टि से देखें दोनों की दृष्टि से गंगा व गंगा की सहायक नदियों में अत्यधिक उर्वरा शक्ति प्रदान करने की शक्ति है। सामाजिक दृष्टि से देखें तो यही गंगा आ करके आवागमन के साधन के रूप में हमारी सभ्यता के विकास के लिए कार्य किया और नावों के संचालन के माध्यम से नगरों का निर्माण हुआ, व्यापार हुआ और एक दूसरे तक अपने संस्कृति को पहुंचाने के लिए इन नदियों का उपयोग किया गया।इसीलिए हमारे देश में नदियों को पावन मां का रूप प्रदान किया गया है और उनकी श्रद्धा से पूजा की जाती है,मानो मां बची रहेगी तो हम बचे रहेंगे और हमारी आगे आने वाली पीढियां बची रहेगी।आज भी इसी उपलक्ष्य में या गंगा सप्तमी का पर्व और गंगा दशहरा का पर्व मनाने के पीछे उनकी पावनता को उनकी अविरल धारा को और उनके द्वारा जो कुछ हमें प्राप्त हुआ है जो हमारी सभ्यता संस्कृति और विकास हमको मिला है उसको बचाने का ही भाव है।और इसके लिए उसके प्रति एक प्रकार से इस अवसर पर समर्पण करना है तथा भावी पीढ़ी को यह बताना है कि यह जो प्राप्त हुआ है इसको बचाए रखना है धरती पर विकास के साथ हम केवल उतना ही उपयोग करें जितना हमारी

आवश्यकता हो और आने वाली पीढ़ी के लिए उसे बचाए भी रखने के लिए या और नए सृजन करने के लिए भी हमेशा चिंतन करते रहें।आध्यात्मिक दृष्टि से देखे तो इतना बड़ा पुण्य पर्व कोई और पर्व नहीं है इस पर्व के पीछे गंगा के उदगम से लेकर गंगासागर में मिलन तक हर जगह पूजा अर्चना होती है ,विशेष करके काशी में बहुत ही आयोजन किए जाते हैं क्योंकि गंगा अपना विराट रूप जो भगवान शिव से स्वर्ग से प्राप्त कर धरती पर आती हैं तो इसी धरती पर वह फिर काशी में भगवान शिव के साथ समावर्तन करती हैं। यह गंगा का पुनर्जन्म वसुधा के कल्याण के लिए हुआ है। यही गंगा सप्तमी का अति महत्वपूर्ण पक्ष है।यह बड़ा सुखद संयोग है कि कल पुष्य नक्षत्र भी है और रवि योग भी है सर्वार्थ सिद्धि योग भी है इस दिन गंगा का मात्र नाम ले लेना दर्शन कर लेना व्यक्ति के यश सम्मान में वृद्धि करता है,और अशुभ ग्रहों का प्रभाव अपने आप समाप्त हो जाएगा।आज पुष्य नक्षत्र अपराह्न 3:01 तक है सर्वार्थ सिद्धि भी है, इसलिए कल की गंगा सप्तमी का महत्व अत्यधिक हो जाता है।सामाजिक महत्व की दृष्टि से देखें तो हमारे यहां गंगा दशहरा, गंगा सप्तमी दोनो गंगा के उपलक्ष में मनाए जाने वाले पावन पर्व हैं। गंगा की पावनता को गंगा को प्रदूषण से बचाने के लिए गंगा को पवित्र बनाए रखने के लिए और नदियों के माध्यम से भारतीय संस्कृति को जागृत रखने के लिए भारत में ये अतीव महत्व पूर्ण पर्व है, मां नर्मदा की भी इसी दिन पूजा की जाती है।

सनातन धर्म परंपरा में सुरसरि का जो विशेष महत्व है माना जाता है वह यह कि यह वह नदी है जो सब प्रकार के जितने भी प्रदूषण हैं उनको समाप्त कर देती हैं और धरा को उर्वर बनाती हैं उदाहरण दिया जाता है कि व्यक्ति को भी गंगा की तरह अपने जीवन में आचरण करना चाहिए।

“कीरति भनिति भूति भलि सोई ।

सुरसरि सम सब कर हित होई।।

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