मण्डल हेड गिरजा शंकर निषाद की रिपोर्ट
जौनपुर। जिला अस्पताल की सिक न्यू बार्न केयर यूनिट (एसएनसीयू) नवजात को जीवन देने का काम कर रही है। समय से पहले जन्म लेने वाले या कम वजन के नवजात को स्वस्थ बनाने में यह यूनिट बड़ी भूमिका निभा रही है। इसी तरह की एक लावारिस नवजात को गत 11 फरवरी को यहाँ लाया गया था, जिसकी स्थिति नाजुक थी लेकिन यूनिट के सभी कर्मचारियों के प्रयास से अब वह सामान्य स्थिति में पहुँच गई है। इससे दो दिन पहले भी इसी तरह की एक और बच्ची को स्वस्थ बनाकर चाइल्डलाइन के माध्यम से बाल कल्याण समिति को सौंपा गया है।
एसएनसीयू का पूरा स्टाफ इन दिनों 11 फरवरी को आई बच्ची पर सारा प्यार लुटा रहा है। उस बच्ची को सब प्यार से परी बुलाते हैं | वहां की स्टाफ नर्स प्रतिभा पांडे बताती हैं कि 11 फरवरी को आई बच्ची बहुत ही प्यारी है। स्टाफ नर्स से लेकर सारा स्टाफ अपनी जिम्मेदारियां निभाने के साथ ही उसका ख्याल रखते हैं। एसएनसीयू के नोडल अधिकारी डॉ संदीप सिंह ने बताया कि एक नवजात बच्ची गत 20 जनवरी को जलालपुर में एक नहर के पास तथा दूसरा नवजात (बालक) 29 जनवरी को खुटहन ब्लॉक के उंगली गांव में लावारिस हालत में मिले थे। इनमें से जलालपुर से मिली बच्ची स्वस्थ घोषित होने के बाद नौ फरवरी को चाइल्ड लाइन को सौंप दी गई। उसके जाने के दो दिन बाद 11 फरवरी को डोभी ब्लॉक के रामदत्तपुर में चाइल्ड लाइन को लावारिस हालत में एक बच्ची मिली।
इस समय एसएनसीयू में इस बच्ची की तथा 29 जनवरी को मिले नवजात (मेल बेबी) की परवरिश चल रही है। उन्हें दूध पिलाने, मालिश करने के लिए सभी की जिम्मेदारी तय है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2017 में एसएनसीयू खुलने से लेकर आज तक 30 से ज्यादा ऐसे नवजात लाए गए जिनके माता-पिता का पता नहीं था। लावारिस हालत में आने वाले ज्यादातर नवजात यहां पर चाइल्ड लाइन के माध्यम से लाए जाते हैं। यहां पर लाए जाने के बाद ऐसे बच्चों के इलाज से लेकर कपड़ा और दूध सभी का खर्च एसएनसीयू ही उठाता है। ऐसे एक नवजात की परवरिस में प्रतिदिन औसतन 150 से 200 रुपये तक का खर्च आता है। स्वस्थ हो जाने पर बाल संरक्षण गृह से सम्पर्क कर इन्हें बाल संरक्षण अधिकारी को सौंप दिया जाता है। जहां से वह बाल संरक्षण गृह बलिया आदि अन्य जगहों पर अच्छे स्वास्थ्य एवं जीवन प्रबंधन के लिए भेज दिए जाते हैं।