प्रतापगढ़: मोहित महराज गंगोत्री धाम ने पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान की अनिवार्यता व आवश्यकता पर विस्तृत जानकारी दी।मोहित महराज जी ने बताया कि पितृ पक्ष में तर्पण और पिंडदान अवश्य करना चाहिए।आगे बताया कि सिद्धांत शिरोमणि ग्रंथ के अनुसार चंद्रमा के ऊर्ध्व कक्ष में पितरलोक है,जहां पितर गण निवास करते हैं।पितर लोक को आंखों से नहीं देखा जा सकता है जीवात्मा जब से स्थूल देह से पृथक होती है उस स्थित को मृत्यु कहते हैं।हमें श्रद्धा पूर्वक अपने पितरों के लिए पितृपक्ष में तर्पण,पिंडदान,दान इत्यादि अपने सामर्थ के अनुसार अवश्य करना चाहिए।श्रद्धा शब्द से श्राद्ध शब्द की निष्पत्ति होती है।पुन्नाम नरकात॒ जायते इति पुत्र:”पुत्र पुन्नामक नरक से त्राण अर्थात जो रक्षा करता है वही पुत्र है।श्रद्धा शब्द के संबंध में मनुस्मृति वायु पद्म पुराण श्राद्ध तत्व श्राद्ध कल्पतरु आदि में विस्तृत वर्णन है।महर्षि पाराशर कहते हैं देश काल पात्र में हविष्यादि विधि द्वारा जो कर्म दर्भ अर्थात कुशा यव तथा मंत्रों से युक्त होकर श्रद्धा पूर्वक किया जाता है उसे श्राद्ध कहते हैं।ब्रह्म पुराण के अनुसार पितरों के उद्देश्य जो ब्राह्मणों को दान दिया जाता है यानी द्रव्य भोजन वस्त्र शैय्या इत्यादि वही श्राद्ध है।श्राद्ध पुनर्जन्म के सिद्धांतों पर आधारित है हम पहले भी कुछ थे और बाद में भी कुछ होंगे।भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं जो जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है और जो मरा है उसका जन्म भी निश्चित है।अपने कर्मों के अनुसार मनुष्य भटकता रहता है।श्राद्ध कर्म में नाम गोत्र संबंध स्थान वस्तु आदि का खास महत्व है।जो हम दान में देते हैं,यदि जीव पशु रुप में है तो उसे बात तृण के रूप में मिलता है,देव योनि में है तो अमृत के रूप में प्राप्त होता है,यक्ष गंधर्व में है वह पान अर्थात अनेक भागों में प्राप्त होता है।प्रेत योनि में है तो सुंदर वायु के रूप में और भोग प्रसाद के रूप में प्राप्त होता है।पद्मपुराण में आया है जैसे भूला हुआ बछड़ा अपनी मां को हजारों गायों के बीच में पहचान लेता है। उसी प्रकार मंत्रों एवं क्रिया द्वारा शोधित वस्तु समुचित प्राणी के पास तक पहुंच जाती है वह चाहे जहां पर हो।पिता की मृत्यु की तिथि पर पितृपक्ष में तर्पण,पिंडदान के साथ ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और भोजन कराना चाहिए।