लेखक- प्रो. आर.एन. त्रिपाठी समाजशास्त्र विभाग काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी
वर्तमान समय मे जो चुनाव चल रहा है और कह सकते हैं कि जो अपने अंतिम पायदान पर है,अगर इस चुनाव पर ध्यान दें तो पक्ष और विपक्ष घात और प्रतिघात संवाद और विवाद प्रमाद और अवसाद हर दृष्टि से एक ही व्यक्ति केंद्र बिंदु में है, वह हैं भारत के प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी’। इस अंतिम पड़ाव पर भी औसतन तीन से अधिक सभाएं प्रतिदिन करके नरेंद्र मोदी जी पूरे देश को अकेले एक व्यक्ति के रूप में संबोधित कर पाने में सफल हुए हैं। वहीं जहां विपक्ष के सारे नेता मिलकर भी अभी समस्त लोकसभा क्षेत्र नहीं पहुंचे वहां मोदी अपने व्यक्तित्व को चुनाव का मुख्य केंद्र बिंदु बनाकर पूरे देश को मथ दिए। 2014 में मोदी ने जब प्रधानमंत्री पद संभाला तब से लेकर के विपक्ष का अगर कोई राजनैतिक प्रहार हुआ तो उस प्रहार के मूल में पार्टी या पार्टी के अन्य नेता न होकर केवल नरेन्द्र मोदी ही रहे। यहां तक की कभी-कभी वह प्रहार अत्यंत निचले तपके का यानी वस्त्र, पहनावा, खानपान पर भी हुआ तो भी वह मोदी के ऊपर ही हुआ, लेकिन मोदी हैं की मानते नहीं, उन्होंने 110 बार जनता कार्यक्रम ‘मन की बात’ अनेको बार युवाओं का कार्यक्रम,परीक्षा पर कार्यक्रम, वीमारी पर कार्यक्रम किया विशेषता यह रही कि लेकिन कहीं भी इन कार्यक्रमों में उन्होंने राजनीति को कोई तरजीह नही दी,और विपक्ष उन्ही को आलोचना से तरजीह देता रहा न कि उनके कार्यक्रमो को, अर्थात ये सब कार्यक्रम विशुद्ध रूप से गैर राजनीतिक रहे। विपक्ष की राजनीति के लोग हैं कि ‘मोदी ही उनकी राजनीतिक शब्दावली का प्रमुख शब्द है आपने देखा होगा कि चुनाव प्रचार में ही नही सामान्य गठबंधन के बैठक में भी पार्टी नही बल्कि मोदी ही मुख्य मुद्दा बने रहे है।विपक्षी मोर्चे आई एन डी आईऐ द्वारा मोदी को लेकर काफी आलोचना की जा रही है और तब तक चुनाव के बीच से ऐसी परिस्थिति आ गई कि चुनाव का कोई दूसरा मुद्दा ही विपक्ष के पास नहीं रह गया सारे राजनीतिक- सामाजिक मुद्दे शून्य हो गए और एकमात्र विपक्ष का मुद्दा रह गया ‘मोदी हटाओ मोदी भगाओ’ यह मुद्दा जितना विपक्ष द्वारा गहराया जा रहा है उससे ज्यादा मोदी का व्यक्तित्व स्वमेव ऊंचा होता चला जा रहा है। उनकी सभाओं में इतनी भीड़ बढ़ती जा रही है कि पूरा देश का विपक्ष एक तरफ जिस व्यक्ति को हटाने को कह रहा है वही व्यक्ति पूरे देश की हर लोकसभा में लोगों से जुड़ने की बात कर रहा है,हर लोकसभा के लोग उसी व्यक्ति को सुनने हेतु मांग कर रहे हैं।
आप अगर राजनीतिक तौर पर विश्लेषण करें तो पाएंगे की तमाम भाजपा सांसदों से बहुत सारे क्षेत्र में जनता नाराज थी परंतु उन्ही क्षेत्र में जनता की मांग या राजनीतिक विश्लेषकों की एक मांग है और थी की अगर मोदी की सभा हो जाएगी और मोदी जी आवाहन कर देंगे तो हमारे प्रति जो असंतोष है जो जनता का असहज भाव है वह समाप्त हो जाएगा, परिणाम वही हुआ है मोदी जी ने जब देखा कि चौतरफा उन्हें पर भरोसा है तो मोदी जी ने भी अथक-अविराम ताबड़तोड़ सभाएं व रोड शो करने लगे।परिणाम यह हुआ की कोई संसदीय क्षेत्र नही बचा जिसकी मांग पर मोदी जी वहां न पहुचे हों।
अब जब विपक्ष एक मुश्त कोई और राजनीतिक मुद्दा न लेकर केवल मोदी पर ही घात प्रतिघात आरोप लगाने लगा तो मोदी कुछ ऐसे अपने बचाव के तरीके अपना लिए जो यद्यपि उनके राजनीतिक सोच के नहीं थे परंतु विपक्ष के जवाब देने के लिए निश्चित रूप से उन्हें अपनाने पड़ें, क्योंकि विपक्ष द्वारा बार-बार यह कहना कि मोदी जी आ जाएंगे तो संविधान बदल देंगे, आरक्षण समाप्त कर देंगे,लोक तंत्र समाप्त हो जाएगा, ये सब पर हावी हो जाएगा, किसी के पास कुछ नहीं बचेगा, तो मोदी जी को भी कहना पड़ा और उन्होंने भी इस आरोप प्रत्यारोपों के बीच बार-बार इस बात को कहा कि दलित और पिछड़े का आरक्षण विपक्ष छीनना चाहता है, संपत्ति जांच के नाम पर स्त्रियों का मंगलसूत्र भी छीनना चाहता है जो निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि ना तो उनका यह कहने का राजनीतिक उद्देश्य था न कभी मोदी जी की सोच में ही था यह तत्समय का विपक्ष का उत्तर है और यह कोई देश की राजनीति में मायने रखता है परंतु विपक्ष द्वारा जब राजनीति में इतना खोखलापन कर दिया तो उस गैर राजनीतिक वाक प्रवंचना की खाई में मोदी भी गिरने को विवश हो गए।
अब प्रश्न यह है कि यह चुनाव अभियान भाजपा के तौर पर विश्लेषण करें तो मुख्यतः मोदी जी अमित शाह ,नड्डा जी और योगी के विशेष प्रभाव में दिखाई दे रहा है परंतु उन सब में मोदी जी इतने आगे हैं कि बाकी लोग भी इन्ही को दिखाकर अपनी चुनावी वक्तृत्व शैली को मजबूत कर रहे हैं।सत्ता पक्ष का हर नेता मोदी को ही केंद्र में रखकर विकास की गाथा का वर्णन कर रहा है।अन्य नेता बिना इनका नाम यूज किये काफी पीछे रह जा रहे हैं,पोस्टर बैनर योजनाएं प्रचार,प्रसार सब के मूल में मोदी की नीतियां व विचार ही तैर रहे हैं। मोदी के नाम पर हो रही भीड़, मोदी की रोड शो, मोदी के वक्तव्य, मोदी का व्यक्तित्व, मोदी को देखना सुनना इसे कह सकते हैं कि एक ही व्यक्ति है जो राजनीतिक ऊर्जा का केंद्र बिंदु है और उसी के तहत सभी उसी की बाह्य कक्षा में दौड़ रहे हैं।यह सत्ता पक्ष तो उनका है जो हो सकता था कि अपने नेता को मजबूत करने के लिए कर रहा हो परन्तु मोदी को और सशक्त बनाने की इस स्थिति को विपक्ष ने और ज्यादा पैदा किया,जनता में मोदी सुप्रीम का नरेटिव विपक्ष ने ही दिया जो मोदी को और प्रभावशाली बना दिया। विशेष करके विपक्षी नेताओं द्वारा मोदी जी के लिए जो तुम-तड़ाक की भाषा का उपयोग किया गया, मोदी जी के कार्य व्यवहार पर जो टिप्पणी की गई निश्चित रूप से वह टिप्पणी मोदी को और मजबूत ढंग से जनता में प्रतिस्थापित किया है।यह भी विचारणीय पक्ष है कि अंततः भारत के चुनाव का विश्लेषण और परिणाम दोनों जातिवाद पर ही जाता है जातीय गणित से भी अगर आकलन करें तो स्वयं मोदी उस वर्ग, संप्रदाय से आते हैं जो सर्वाधिक संख्या वाला है।यदपि स्वयं का मोदी का आचरण और व्यक्तित्व इस पर कभी केंद्रित नहीं रहा। मोदी ने भारत की आधी आबादी को केंद्रित किया, मोदी ने युवाओं को केंद्रित किया मोदी ने समाज के दबे कुचले पिछड़े वर्ग को नेतृत्व किया, और उनकी जो लोक लुभावनी योजनाएं रही उन योजनाओं का परिणाम रहा कि लोग जाति और धर्म के बंधन से हटकर के विशेष करके स्त्रियां मोदी को ज्यादा पसंद करने लगी क्योकि लाभ के और सुविधा की केंद्र बिंदु वही हैं।मोदी का राष्ट्रीय चुनावी नेरेसन विकास था जबकि विपक्ष का राष्ट्रीय चुनाव नॉरेटिव मुख्य रूप से ‘मोदी को हटाना था’ विशेष करके उत्तर प्रदेश में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस प्रमुख राहुल गांधी की जितनी भी रैलियां हुई सारी रैलियों में मोदी को हटाने की ही बात की बार-बार पुनरावृत्ति की गई। राजनीति में जब भी किसी व्यक्ति को बार-बार अगर आलोचनाओं के समुद्र में धकेला जाता है तो निश्चित रूप से और सबसे बड़ा शिलाखंड बनाकर के हर व्यक्ति को टक्कर देता है ठीक यही बात मोदी के इस चुनाव प्रचार में रही।
अब अगर हम मतदाताओं के पक्ष से मोदी के बारे में जानना चाहे तो कुछ बातें ऐसी आपको लगेगी जिस पर विचार यहां आवश्यक है जैसे चुनाव प्रचार में इंटरनेट मीडिया ने सशक्त भूमिका निभाई और उसे भूमिका में मोदी जी की भूमिका बड़ी रही। कोई ऐसा टीवी चैनल जो समाज में अपना मायने रखता है नहीं रहा होगा जी टीवी चैनल पर मोदी जी ने अपना संवाद न रखा हो और जिसके प्रश्नों का उत्तर न दिया कोई ऐसा समाचार पत्र नहीं रहा जिन समाचार पत्रों पर सामाजिक मुद्दे पर मोदी जी ने कोई लेख न लिखा हो और कोई अपनी वैचारिक प्रस्तुति न दी हो। राजनीति के तैयारी में जहां विपक्षी दलों ने चुनाव की शुरुआत के बाद एक होकर के राजनीति की तैयारी किया वहीं मोदी ने इस चुनाव की तैयारी दो वर्ष पूर्व प्रारम्भ करके अपनी यात्राएं प्रचार हेतु शुरू कर चुके थे इतनी वृहद तैयारी और एक व्यक्ति द्वारा उत्तर भारत के तीक्ष्ण तापमान में लगातार तीन से चार सभाएं करना शायद किसी भी व्यक्ति के लिए असंभव असहज दिखाई देता है बावजूद इसके मोदी जी ने कभी भी कोई प्रोग्राम स्थगित नही किया, जनता चाहे उनकी मतदाता रही हो या नही वो सबके लिये कुछ न कुछ सौगात की ही बात बोले। चुनाव आयोग को एक दो बार छोड़कर कहीं असहज नही होना पड़ा परंतु विपक्ष बहुत सारे ऐसे आरोप लगाते रहा,मोदी जी की चमक बढ़ती चली गयी।प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा देश में जो कार्य किया गया जनता उसे कार्य को देख रही है विशेष करके जो गरीब राशन योजना है उसे योजना में लाभ पाने वाली महिलाएं टॉयलेट रूम बन जाने से लाभ पाने वाले परिवार, गैस चूल्हा पा जाने से लाभ वाले परिवार मोदी जी को अपने राजनीतिक दृष्टि का चश्मा उतार करके लाभ की दृष्टि से जब देखते हैं तो उन्हें लगता है कि बैंक में मेरा अकाउंट खुलवाने वाला यही व्यक्ति है हमारे अकाउंट में दस हजार की रकम बिना गांरटी देने वाला यही व्यक्ति है और हमको यह सारी सुविधाएं प्रदान करने वाला यही व्यक्ति है,अपनी दलीय आचरण और दलीय लोभ को।जिससे उस सामान्य व्यक्ति का उस सामान्य महिला का वर्ग जाति धर्म और पार्टी का भाव मिट जाता है और उसकी अंतर्दृष्टि और विकास का परिदृश्य उसके सामने केवल एक मात्र महनीय व्यक्तित्व रह जाता है वह व्यक्तित्व मोदी का है। इसलिए यह चुनाव कहा जा सकता है कि इस चुनाव का चौतरफा केंद्र बिंदु मोदी हैं और मोदी पर आधारित ही यह चुनाव प्रचार हो रहा है,यानी चुनाव की मूल विषय विवेचना में मोदी और मोदी जी के कार्य ही है।