कौन कहता है कि आसमां में छेद नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो…..
आज इन लाइनों शत प्रतिशत यथार्थ साबित करती हुए गुरु शिष्य की यह जोड़ी जो बताती है किसी शिक्षक के लिए किसी विशेष एनवायरनमेंट की जरूरत नहीं होता है, वह जहां खड़ा हो जाता है, वह जहां चाह लेता है माता सरस्वती की धारा वहीं बहने लगती है।
डा अखिलेश मोदनवाल के मार्गदर्शन में ग्रामीण विद्यार्थी सचिन यादव ने बगैर किसी कोचिंग प्राप्त किए अपने गांव में ही पढ़ाई करते हैं नया कीर्तिमान स्थापित ऐसे विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा बन गया जो पैसों की अभाव में कोचिंग का सहारा नहीं पाते और निराश हताश हो जाते हैं ऐसे में सचिन की कहानी अपने आप में प्रेरणा देती है। सचिन के माता-पिता किसान हैं जो ग्राम अरुवां, थाना सुजानगंज में छोटे खेतिहर है। घर में पैसे की किल्लत के कारण अपने बेटे को किसी भी बड़े संस्थान में दाखिला नहीं करवा पाए। सचिन यादव अपने शिक्षक सर्वजीत सर के कारण डॉ अखिलेश मोदनवाल जो ग्राम गोपालपुर के रहने वाले हैं से मार्गदर्शन प्राप्त किया क्योंकि लाकडाउन था इसलिए उन्होंने लगातार जैसे 6-8 घंटे का अध्यापन कार्य श्री हनुमान मंदिर हलवाई का पक्के तालाब, गोपालपुर पर चलने लगा।
सचिन की सफलता अपने आप में अद्वितीय जब कई कारणों से महत्वपूर्ण आती है जैसे
सचिन यूपी बोर्ड का सामान्य विद्यार्थी रहा है जो इंटरमीडिएट यू पी बोर्ड से मैथमेटिक्स की पढ़ाई किया था उसे भविष्य के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं था लेकिन अपने मार्गदर्शक डॉ अखिलेश मोदनवाल के प्रभाव में आकर सचिन ने बायोलॉजी की पढ़ाई करने लगा और प्रयागराज के जीआईसी में एक विषय से अखिलेश मोदनवाल ने सचिन का एडमिशन करवा दिया। इस तरीके से सचिन ने नीट की तैयारी और इंटरमीडिएट बायोलॉजी की तैयारी एक साथ प्रारंभ कर दिया।
लाखों में कोई एक ऐसा विद्यार्थी होता है जिसकी इंटरमीडिएट की पढ़ाई मैथमेटिक्स हुई हो और वह नीट की परीक्षा पास किया हो और उसी में एक नाम सचिन यादव का है।
सचिन यादव ने अपनी नीट की पढ़ाई पूरी की पूरी गांव में ही रहकर किए है वह भी डॉक्टर अखिलेश मोदनवाल के निर्देशन में। और गांव के राजीव चतुर्वेदी ने भी काफी मदद की।
आज जहां लाखों लाख रुपए कोचिंग की फीस है जिसको बच्चे भर नहीं पाते हैं और वह पढ़ाई का सपना छोड़ देते हैं ऐसे में सचिन यादव एक बहुत बड़ा उदाहरण है जो यह साबित करता है सफलता के लिए किसी किसी अच्छे संस्थान के लिए नहीं बल्कि साधना की जरूरत होती है सफलता के लिए बहुत वेल सेटल्ड हाई-फाई क्लासरूम की जरूरत नहीं बल्कि एक अच्छे मार्गदर्शक चाणक्य की जरूरत होती है।
सचिन की सफलता के क्रम में डॉ अखिलेश मोदनवाल बताते हैं कि लाकडाउन के दिनों में जब मेरे जीवन में ही नहीं बल्कि पूरे संसार में, जहाँ जान लेवा नेगेटिविटी तरंगें हिलोरे मार रही थी और इसी बीच मेरे एकांतवास स्थान, श्री हनुमान मंदिर गोपालपुर हलवाई का पक्का तालाब पर कोचिंग पढ़ने हेतु मेरे जूनियर शिक्षक सर्वजीत ने अपना स्टूडेंट मेरे पास इंजीनियरिंग की तैयारी करने के लिए भेजे परंतु मेरे मार्गदर्शन में आकर सचिन ने नीट 2022 की तैयारी करने लगा जिसके कारण उसके रिश्तेदार तक नाराज़ हो गए कि किसके चक्कर में पड़ गये? इंजीनियरिंग एंट्रेंस की पढ़ाई करवाते वक्त मेरी गाँव में ही कुछ क्रांति करने करने का उत्साह जगा कि अब यही से डॉक्टर इंजीनियर बनाया जाए। इस मिशन के लिए सचिन ने अपने सारे दोस्तो को जो पढ़ने में उससे बहुत तेज थे और जो भविष्य में कोटा कानपुर जाने का सपना लिए बैठे थे सबको गांव में आकर मोदनवाल सर से पढ़ने हेतु, तैयारी हेतु आने का निमंत्रण दिया परंतु पढ़ने के बजाय अधिकतर ने इस बात का उपहास ही उड़ाया कि गांव में कौन कैसे तैयारी करायेगा?
कुछ स्टूडेंट आये भी तो इस फायदे मे आये अभी लॉक डाउन में पढ़ लेते है उसके बाद कोटा तैयारी के लिए जाएंगे। वो सब कहाँ है कुछ पता नहीं। और जो बच्चा मैथमेटिक्स इंटर पास है बायलॉजी उसे आती नहीं और डेढ़ साल के भीतर नीट 2022 मे सफलता पाना नया इतिहास टॉप करने के सामान है। मजे की बात यह है कि मंदिर के एक छोर पर जहां सचिन और उसके कुछ साथी मेडिकल और इंजीनियरिंग के सपने बोल रहे थे दूसरे छोर पर लगातार गांव के अधिकतर लोग आकर ताश की पत्ती खेलते थे और डिस्टर्ब कर रहे थे लेकिन ताश की पत्ती खेलने वाले थक हार कर हम अपने घर चले जाते थे लेकिन सचिन की पढ़ाई उसके भी बात घंटे तक चलती रहती थी मेरे पास और कुछ समय बाद ताश की पत्ती खेलने वाले भी संकोच करने लगे।
सचिन के माता नगीना बताती हैं दिन रात पढ़ता था ना खाने का फिक्र न सोने का हमे तो बड़ी चिंता रहती थी।
पिता मगन लाल बताते है सचिन एक आदर्श पुत्र है जिस पर मुझे गर्व है और उसके टीचर को बहुत बहुत धन्यवाद जो समय समय पर सही रास्ता दिखाये।
पूर्णतया डा अखिलेश मोदनवाल के निर्देशन में एकल मार्गदर्शन से प्राप्त यह सफलता के लिए गांव में मंदिर पर बैठ कर महीनों पढाई की गयी न कुर्सी ना मेज ना बोर्ड। और वही ताना बाना बुना गया के अगले दो साल के भीतर कैसे डॉक्टर बनना है।
सचिन ने साबित किया सफलता के लिए अच्छे संसाधन कि नहीं साधना की जरूरत होती है सफलता के लिए बहुत हाई फाई वेल सेटल्ड कोचिंग क्लासरूम की नहीं केवल एक अच्छा मार्गदर्शक गुरु की जरूरत होती है।