मण्डल हेड गिरजाशंकर निषाद की रिपोर्ट
जौनपुर। जिस एंड्रायड मोबाइल को किशोरों से दूर रखा जाता था, आज मजबूरीवश अभिभावक उन्हीं के हाथों में थमा रहे हैं। कोई कर्ज लेकर डाटा रीचार्ज करा रहा है तो कोई मेहनत-मजदूरी कर मोबाइल फोन खरीदने को विवश है। ऐसा इसलिए हो रहा है कि अभिभावकों को अपने बच्चों के शिक्षा की चिता है। दूसरी तरफ इंटरनेट मीडिया के माध्यम से किशोर अपराध की ओर कदम बढ़ाते नजर आ रहे हैं। एक वर्ष में दो दर्जन से अ अधिक ऐसी घटनाएं हुईं जिसका कारण मोबाइल फोन बना। कोरोनाकाल के पूर्व किशोरों के हाथ में मोबाइल फोन देने से अभिभावक झिझकते थे। फोन बच्चे लेकर स्कूल न जाएं इसके लिए अध्यापक उनकी तलाशी भी लेते थे। हिदायत देते थे कि बच्चे एंड्रायड फोन से दूर रहें। कोरोना काल के बाद आनलाइन पढ़ाई शुरू हुई। छात्र-छात्राओं को वाट्सएप ग्रुप व विभिन्न एप के माध्यम से आनलाइन शिक्षा दी जाने लगी। बच्चों की शिक्षा को लेकर अभिभावकों ने किशोरों के हाथ में मोबाइल थमा दी। ऐसे में किशोर अक्सर मोबाइल फोन में जुटे रहते हैं। कभी आनलाइन क्लास चलने की बात बताकर तो कभी कोर्स पूरा करने का बहाना बताकर अभिभावकों को संतुष्ट भी करने लगे हैं। अब किशोरों के हाथ मोबाइल देना और डाटा रीचार्ज कराना मजबूरी बन गया है।