जौनपुर संविधान दिवस अधिक खास होने जा रहा है क्योंकि आजादी के 76 साल बाद उच्चतम न्यायालय में संविधान निर्माता और भारत रत्न बाबासाहब अंबेडकर की प्रतिमा स्थापित की जा रही है। इस महनीय कार्य के सूत्रधार उच्चतम न्यायालय के 50वें मुख्य न्यायाधीश डी.वाई.चंद्रचूड़ जी हैं। अम्बेडकर जी स्वयं एक महान विधिवेत्ता और देश के प्रथम कानून मंत्री थे अत: मौलिक अधिकारों का रक्षक उच्चतम न्यायालय में ऐसे व्यक्ति का सम्मान पहले ही हो जाना चाहिए था। किन्तु देर ही सही अब ये होने जा रहा है।सोने पर सुहागा यह है कि इस प्रतिमा का अनावरण एक ऐसी सशक्त और प्रेरणादायी व्यक्तित्व के माध्यम से होने जा रहा है जो स्वयं आदिवासी समुदाय से आती हैं।अनावरण देश की 15वीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू जी के कर -कमलों से होने जा रहा है।देश एक महत्वपूर्ण परिदृश्य का साक्षी होगा,जब प्रतिमा का अनावरण करने वाला और जिसके प्रतिमा का अनावरण होने जा रहा दोनों समाज के वंचित समुदाय से आते हैं और कहीं ना कहीं जातीय विभेद का सामना किये,लेकिन अपनी प्रतिभा और काबिलियत के कारण समाज के सिरमौर बन गए। आज जब भी भारतीय संविधान की बात आती है तो बाबासाहब अंबेडकर का नाम स्वयं जुड़ जाता है ऐसा प्रतीत होता है कि संविधान और अंबेडकर जी का नाम एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं।2015 से 26 नवम्बर को संविधान दिवस मनाने की परिकल्पना वर्तमान राजग सरकार द्वारा किया गया, क्योंकि 26 नवंबर 1949 को हम भारत के लोग ने संविधान को अंगीकृत अधिनियमित और आत्मार्पित किया था।संविधान दिवस को मनाने के पीछे का उद्देश्य प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बताया था कि नई पीढ़ी को संविधान बनने की प्रक्रिया,उद्देश्य से जोड़ा जाए। वर्ष में कम से कम एक दिन संविधान की प्रस्तावना का वाचन उद्बोधन और व्याख्यान हो,वाद- विवाद प्रतियोगिता,प्रश्नोत्तरी आदि के माध्यम से छात्रों को जागरूक किया जाए।
बाबासाहब अंबेडकर जी ने संविधान निर्माण में उन समस्त पहलुओं को ध्यान में रखा जिससे समाज के उन्नयन के लिए आवश्यक सभी लाभों को जन -जन तक पहुंचाया जा सके।संविधान के तीसरे भाग मौलिक अधिकारों में सबसे पहले अनुच्छेद 14 से 18 के अंतर्गत समानता का अधिकार रखा गया,जिसमें धर्म,मूल वंश, जाति,लिंग,जन्म स्थान के आधार पर किसी भी व्यक्ति से भेदभाव न किया जाये और अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता का अंत भी शामिल किया गया इसके दृष्टिगत 1955 में अस्पृश्यता निवारण अधिनियम भी संसद से पास करवाया गया। क्योंकि संविधान बनाने वाले अधिकांश सदस्यों ने अपने आस -पास इस भेदभाव का सामना किया ही था. यही कारण है कि संविधान में सबसे पहले अधिकार वाला भाग रखा गया उसके बाद कर्तव्यों का।अधिकार वाला भाग पहले इसलिए कि दशकों से शोषित,वंचित और गुलामी की यातना झेल रहे भारतीयों को पहले अधिकार से युक्त किया जाए उसके बाद अपने कर्तव्यों का पालन कर सभी नागरिक देश को एक महान ऊंचाई तक ले जाने में योगदान दे सकें।यह उस संविधान की ही देन है कि लोकतंत्र व्यक्ति के दरवाजे तक पहुंचा है और एक घास छीलने वाले,भेड़-बकरी चराने वाले को भी इतना अधिकार है कि ग्राम प्रधान से लेकर राष्ट्रपति पद तक वह दावेदार है।आज जब संविधान दिवस के दिन अंबेडकर जी को उनके योग्य सम्मान न्याय के सबसे पवित्र और बड़े मंदिर उच्चतम न्यायालय के प्रांगण में प्रतिमा का अनावरण करके दिया जा रहा है तो समस्त देशवासी को यह प्रतिज्ञा करना चाहिए कि देश के विकास में अपने व्यक्तिगत योगदान को अवश्य प्रदान करें यही संविधान का सम्मान और संविधान निर्माता बाबा साहब अंबेडकर को सच्ची श्रद्धांजलि होगी।