विश्व में सार्वधिक (80करोड़ लोगों द्वारा) बोली जाने वाली भाषा हिंदी विश्व के सभी देशों में लगभग अपना स्थान बना चुकी है और विश्व के प्रमुख विश्वविद्यालयों सहित डेढ़ सौ से अधिक विश्वविद्यालयों में हिंदी अपनी सम्मान जनक रुप से उपस्थित दर्ज करा चुकी है। यूनेस्को की सात भाषाओं में हिंदी अपना स्थान बना चुकी है और संयुक्त राष्ट्र संघ में भी सम्मान पा चुकी है।जहां आज विश्व हिंदीमय होने की तरफ अग्रसर हो रहा है वहीं भारत में (75% लोगों द्वारा बोली समझी जाने वाली भाषा) अपने ही देश में अपमानित महसूस कर रही है और मेहमान के रूप में आई अंग्रेजी ने उसे चौदह पंद्रह वर्ष का वनवास दे दिया लेकिन आज सत्तर साल बाद भी हिंदी वनवास में ही बीता रही है।हिंद का सिंहासन उसे नसीब नहीं हो रहा है। सबसे बड़े दुःख की बात ये है कि उस समय हमारे दक्षिण भारत के नेताओं ने हिंदी को राष्ट्रभाषा राजभाषा के रूप में मान्यता दिलाने में पुरजोर समर्थन किया था लेकिन आज उनके उत्तराधिकारियों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया है और खुशवंत सिंह ने जापान में इसे अनपढ़ गंवार की भाषा कहा और ये भूल गए कि हिंदी साहित्य का अनुवाद अन्य भाषाओं में हो रहा है।अगर हम सब अंग्रेजी भाषा की मेहमाननवाजी कर चुके हों तो हिंदी को हिंद के प्रत्येक सरकारी गैर-सरकारी स्कूल, कालेज, विश्वविद्याल, संसद, न्यायालय और कार्यपालिका में और आमजन के द्वारा लिखित मौखिक रूप से प्रयोग की कानूनन मान्यता दिलाकर उसका राजतिलक करें।