काशी:-भाई दूज का पर्व भाईयों के प्रति बहनों की श्रद्धा और विश्वास का त्योहार है।यह पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को होती हैं इसे यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है।इस दिन बहन अपने भाइयों को तिलक लगाकर लंबी उम्र की कामना करती हैं।इस दिन भाई को बहन के घर जाकर बहन की पूजा करनी चहिए और बहन को उपहार देकर उनके यहां भोजन करना चाहिए।हेमाद्रि के चतुर्वर्ग चिन्तामणि में वर्णन आता हैं कि
*अतो यमद्वितीया सा प्रोक्ता लोके युधिष्ठिर,*
*अस्यां निजगृहे पार्थ न भोक्तव्यमतो बुधैः।*
*स्नेहेन भगिनीहस्ताद्भोक्तव्यं पुष्टिवर्द्धनम्”,*
*अतो यमद्वितीया सा प्रोक्ता लोके युधिष्ठिर।।*
*अस्यां निजगृहे पार्थ न भोक्तव्यमतो बुधैः।*
*स्नेहेन भगिनीहस्ताद्भोक्तव्यं पुष्टिवर्द्धनम्”।*
हे युधिष्ठिर,इसलिए यह यम-द्वतीया कहलाती है।इस दिन बुद्धिमान लोगों को अपने घर में भोजन नहीं करना चाहिए। वे स्नेह पूर्वक बहन के घर भोजन करे,जिससे उनकी वृद्धि होगी।
भाई दूज के विषय में एक पौराणिक मान्यता के अनुसार यमुना ने इसी दिन अपने भाई यमराज की लंबी आयु के लिए व्रत किया था और उन्हें अन्नकूट का भोजन खिलाया था।कथा के अनुसार यम देवता ने अपनी बहन को इसी दिन दर्शन दिए थे। यम की बहन यमुना अपने भाई से मिलने के लिए अत्यधिक व्याकुल थी,अपने भाई के दर्शन कर यमुना बेहद प्रसन्न हुई।यमुना ने प्रसन्न होकर अपने भाई की बहुत आवभगत की।यम ने प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया कि इस दिन अगर भाई-बहन दोनों एक साथ यमुना नदी में स्नान करेगें, तो उन्हें मुक्ति प्राप्त होगी,इसी कारण से इस इन यमुना नदी में भाई-बहन के साथ स्नान करने का बड़ा महत्व है।इसके अलावा यम से यमुना ने वचन लिया कि आज के दिन हर भाई को अपनी बहन के घर जाना चाहिए।तभी से भाई दूज मनाने की प्रथा चली आ रही है।वही इस त्योहार से संबंधित एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण नरकासुर का वध करके भाई दूज के दिन ही वापस द्वारका लौटे थे,ऐसे में उनकी बहन सुभद्रा ने अपने भाई का स्वागत फल, फूल, मिठाई, और दीयों को जलाकर किया था। उसके अलावा सुभद्रा ने भगवान श्री कृष्ण का तिलक करके उनके दीर्घायु की कामना भी की थी।