गोरखपुर। बाबा राघव दास (बीआरडी) मेडिकल कॉलेज के स्वर्ण जयंती समारोह में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इससे अपने जुड़ाव का रजत जयंती समारोह भी मनाएंगे। विगत करीब ढाई दशक से योगी इसके हर दर्द से बावस्ता रहे, सांसद के रूप में दर्द से निजात की आवाज बुलंद की और मुख्यमंत्री बनते ही मुकम्मल इलाज भी कर दिया। पूर्ववर्ती सरकारों के उपेक्षित रवैये से जो मेडिकल कॉलेज बदहाल हो चुका था, वह बीते साढ़े पांच साल में पूर्वांचल के लोगों में चिकित्सा सुविधाओं के लिहाज से अब बड़े केंद्र के रूप में भरोसे का प्रतीक बनकर उभरा है।
शनिवार (5 नवंबर) को बीआरडी मेडिकल कॉलेज का स्वर्ण जयंती समारोह आयोजित है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। पचास साल की अपनी यात्रा में इस मेडिकल कॉलेज ने तमाम उतार चढ़ाव देखे हैं। गोरखपुर में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) की स्थापना से पूर्व तक बीआरडी मेडिकल कॉलेज पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार और पड़ोसी देश नेपाल की तराई तक के करीब 6 करोड़ लोगों के इलाज के लिए एकमात्र बड़ा केंद्र रहा है। पर, पूर्व की सरकारों ने इस केंद्र को उसकी महत्ता के अनुरूप कभी अपनी प्राथमिकता में नहीं रखा। नतीजतन करोडों लोगों के इलाज का दारोमदार संभालने वाला यह मेडिकल कॉलेज समयानुकूल संसाधनों के अभाव में खुद ही बीमार सा दिखने लगा। नब्बे के दशक के दूसरे हिस्से में इसकी बदहाली जब चरम पर पहुंचने लगी तब पहली बार संजीदगी से सुध ली गई। और, इस सुध लेने का श्रेय योगी आदित्यनाथ को जाता है। करीब ढाई दशक से योगी इस मेडिकल कॉलेज के रग रग से वाकिफ हैं। 1998 में पहली बार सासंद बनने के पहले से उन्हें इसकी उपेक्षा का पता चल चुका था। सांसद बनने के बाद से मार्च 2017 में मुख्यमंत्री बनने तक संसद का कोई भी ऐसा सत्र नहीं था जब योगी ने बीआरडी मेडिकल कॉलेज की समस्याओं से सरकारों की तंद्रा न तोड़ी हो। कभी संसाधनों के अभाव, कभी इंसेफेलाइटिस तो कभी मान्यता के संकट को लेकर योगी देश के सदन में पूर्वी उत्तर की जनता की बुलंद आवाज बने। इतना ही नहीं, कई बार उन्होंने आंदोलन का रास्ता अपनाते हुए मेडिकल कॉलेज से कलेक्ट्रेट और कमिश्नरी तक जनता को साथ जोड़कर चिलचिलाती धूप में पैदल मार्च भी किया। उनके आंदोलनों और संसद में उठाए गए मुद्दों से स्थितियां कुछ बदली भीं लेकिन जनविश्वास बहाली लायक स्थिति तभी बनी जब राज्य की कमान साढ़े पांच साल पहले खुद उनके हाथों में आई।