अमित पाण्डेय की रिपोर्ट
उन्नाव गंगा स्नान से भी महत्वपूर्ण है गंगाजी का दर्शन करना। केवल झूठ को छोड़कर मानस की प्रत्येक चौपाइयों में राम जी का वास हैं। .एकमत एक भाव से भगवान के चरणों में अनुराग रखने वाले ही सत पंच होते हैं।भगवान के भजन के बिना मनुष्य का जीवन सुगंधित नही हो सकता है।भगवान का भजन जगत की वस्तुओं के लिए नही है यह भक्ति उनकी कृपा के लिए होती है। सांसारिक वस्तुओं के सुख के लिए भगवान की नही देवताओं की पूजा करनी चाहिए।
उपरोक्त बातें पूज्यश्री प्रेमभूषण जी महाराज ने अपने व्यासत्व में रामलीला कमेटी उन्नाव द्वारा साकेत धाम, रामलीला मैदान उन्नाव में दि.29 नवम्बर से 7दिसंबर तकआयोजित नौ दिवसीय श्रीरामकथा के मध्य व्यक्त किया।
सरस्वती मइया को प्रभु राम की कठपुतली बतलाते हुए पूज्यश्री ने रामजी को इसके सूत्रधार की संज्ञा प्रदान किया। पूज्यश्री ने जनमानस को सचेत करते हुए कहा कि, भक्त को सदैव भौकाल से दूर रह कर सत्य पंचों के साथ निर्मल जीवन जीना चाहिए।मानस की पंक्तियों को हृदयस्थ कर लेने वाले को कुछ भी करने की आवश्यकता नही होती है।कथा में पधारे उन्नाव के सांसद साक्षी महाराज के समक्ष पूज्यश्री ने सरकार द्वारा किये गए विकास कार्यो की सराहना करते हुए क्षेत्र के अधूरे जन विकास कार्यों को भी पूर्ण करने की बात कही।
अपना मंगल चाहने वाले को उत्पाती व्यक्ति से सदैव बचकर रहना चाहिए।भगवत चरणों और भगवत भक्तों की सेवा करने वाले के समस्त पापों को भगवान स्वयं समाप्त कर देते हैं।भगवान और संतों की कृपा से तामस भाव का व्यक्ति भी राजस भाव में परिवर्तित हो जाता है।मनुष्य जीवन की एक कड़वी सच्चाई को इंगित करते हुए पूज्यश्री ने कहा कि परिवार के द्वारा सताए जाने के बाद ही लोग भगवान की शरण में भक्ति करने के लिए आते हैं।पूज्यश्री ने बाल लीला प्रसंग के वर्णन में कहा कि जीवन में जीव को जो वस्तु जितनी देर से प्राप्त होती है उसके प्रति उसका उतना ही अधिक प्रेम-अनुराग होता है।माया से मुक्ति के लिए स्वयं को मायापति के चरणों में लगाना होगा।परमात्मा में लगा जीव जैसे ही जगत में लगता है वैसे ही परमात्मा छूट जाते हैं।अपने सौभाग्य और परिवार के कल्याण के लिए बच्चों को व्यापार के साथ-साथ परमार्थ का भी सहयोगी बनाना अति आवश्यक है।पूज्यश्री ने कहा कि प्रेम में समय का सदैव अभाव ही रहता है,क्योंकि अपने प्रेमी से संपर्क और सामीप्य कोई कभी खोना नही चाहता। संस्कार जीवन के लिए अति आवश्यक है अतः हम को नित्य सद्गुणों को ग्रहण करना चाहिए,इससे संस्कार सुदृढ हो जाता है।जीवन की व्यस्तता में भी नित्य सूर्यनारायण को अर्ध्य, मानस का पाठ और गायत्री मंत्र जाप के साथ कभी कभी तीर्थयात्रा होती रहनी चाहिए। घर में बच्चे और वृद्ध हों उन्हें सर्व प्रथम उनकी सेवा करके तब भगवान की पूजा करनी चाहिए।