जौनपुर मछली शहर तहसील उद्योग व्यापार मंडल अध्यक्ष विश्वामित्र गुप्ता ने इफ्तार पार्टी के बारे मे बताये कहा कि इस्लाम धर्म में रमजान का महीना साल का ९ वाँ महिना होता है जो परवर दिगार ( अल्लाह ) को याद करने , उनसे अपने साल भर में किये गये गुनाहो की माफी माँगने , अल्लाह के द्वारा भेजी गई किताब वा ईमान की बाते जानने , अपनी सालाना कमाई का एक हिस्सा जरूरत मन्दो में वितरित करने का होता है ,जिसका मक़सद ये भी है कि इंसान बुराई से जुड़ा कोई भी काम ना करें ।कुल मिलाकर रमज़ान का मक़सद इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है. इसका मक़सद एक दूसरे से मोहब्बत, प्रेम, भाइचारा और खुशियां बांटना है ।
इस माह का चाँद देखते ही रोजा रखने का इबादत करने का शिलसिला सुरु हो जाता है । सुबह दिन निकलने के पहले सेहरी अर्थात कुछ भी खा कर पानी पीना तथा नमाज पढ़ना . फिर उसी रात से तराबीह नमाज का सिलसिला शुरु हो जाता है. तराबीह एक नमाज़ है, जिसमें इमाम (नमाज़ पढ़ाने वाला) नमाज़ की हालत में क़ुरआन पढ़कर नमाज़ में शामिल लोगों को सुनाता है. इसका मकसद, लोगों की क़ुरआन के ज़रिए अल्लाह की तरफ से भेजी हुई बातों के बारे में बताना है. तराबीह को रात की आखरी, यानी इशां की नमाज़ के बाद पढ़ा जाता है ।
.रोजे को अरबी भाषा में सौम कहा जाता है. सौम का मतलब होता है रुकना, ठहरना यानी खुद पर नियंत्रण या काबू करना. फारसी में उपवास को रोजा कहते हैं. भारत के मुस्लिम समुदाय पर फारसी प्रभाव अधिक होने के कारण उपवास को फारसी शब्द ही उपयोग किया जाता है.
रोज़े के मायने सिर्फ यही नहीं है कि, इसमें सुबह से शाम तक भूखे-प्यासे रहो. बल्कि रोज़ा वो अमल है, जो रोज़दार को पूरी तरह से पाकीज़गी का रास्ता दिखाता है. रोजा इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई का रास्ता दिखाता है. महीने भर के रोजों को जरिए अल्लाह चाहता है कि इंसान अपनी रोज़ाना की जिंदगी को रमज़ान के दिनों के मुताबिक़ गुज़ारने वाला बन जाए. रोज़ा सिर्फ ना खाने या ना पीने का ही नहीं होता, बल्कि रोज़ा शरीर के हर अंग का होता है.जिसका मक़सद ये भी है कि इंसान बुराई से जुड़ा कोई भी काम ना करें ।कुल मिलाकर रमज़ान का मक़सद इंसान को बुराइयों के रास्ते से हटाकर अच्छाई के रास्ते पर लाना है. इसका मक़सद एक दूसरे से मोहब्बत, प्रेम, भाइचारा और खुशियां बांटना है. रमज़ान का मक़सद सिर्फ यही नहीं होता कि एक मुसलमान सिर्फ किसी मुसलमान से ही अपने अच्छे अख़लाक़ रखे. बल्कि मुसलमान पर ये भी फर्ज है कि वो किसी और भी मज़हब के मानने वालों से भी मोहब्बत, प्रेम, इज़्ज़त, सम्मान, अच्छा अख़लाक़ रखे. ताकि दुनिया के हर इंसान का एक दूसरे से भाईचारा बना रहे. गरीब मजलूम का ख्याल रखें. I पूरे रमजान माह में इफ्तार का कार्यक्रम होता है जिसमे एक साथ सभी मुस्लिम वा आमन्त्रित अन्य मजहबी , सियासती , धार्मिक लोग रोजा खोलते है ।
माह के अन्त में चाँद देखकर ईद का मुबारक त्योहार मनाया जाता है अब २९ या ३० दिनो का रोजा होगा ये चाँद दिखने पर निर्भर है ।