डॉ योगेंद्र पांडेय की रिपोर्ट
- रसूलपुर, चिंगी शहीद व रहमतनगर में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा।
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश। ग़ौसे आज़म हज़रत सैयदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां के उर्स-ए-पाक (ग्यारहवीं शरीफ़) पर शहर में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा का सिलसिला जारी है। मंगलवार को रसूलपुर, रहमतनगर व चिंगी शहीद तुर्कमानपुर में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा हुआ। आगाज़ क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से हुआ। नात व मनकबत पेश की गई।
रसूलपुर में अवाम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि संतकबीरनगर के शहर क़ाज़ी मुफ़्ती मोहम्मद अख़्तर हुसैन अलीमी क़ादरी ने कहा कि हिन्दुस्तान पैग़ंबर हज़रत आदम अलैहिस्सलाम का मुल्क है। इसकी सुरक्षा, शांति और तरक्की के लिए प्रयास करना हम सभी की जिम्मेदारी है। हिन्दुस्तान में औलिया किराम ने बिना किसी भेदभाव के हमेशा लोगों के दु:ख-दर्द को समझा। औलिया किराम आपसी भाईचारे और इंसानी हमदर्दी का जरिया बने। औलिया किराम आज भी अपने मजारों में ज़िंदा हैं और जिस तरह अपनी ज़िदंगी में बिना किसी भेदभाव के लोगों को रुहानी और जिस्मानी फायदा पहुंचाते थे। उसी तरह आज भी अल्लाह की अता से फायदा पहुंचाते हैं। औलिया किराम अल्लाह के महबूब बंदे हैं। इनका दोस्त अल्लाह का दोस्त और इनका दुश्मन अल्लाह का दुश्मन है।
अध्यक्षता करते हुए मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने कहा कि मुसलमानों ने साइंस के हर क्षेत्र में अपनी ख़िदमतों को अंज़ाम दिया और विज्ञान को मजबूती प्रदान की है। क़ुरआन-ए-पाक में बहुत सारी ऐसी आयतें हैं, जिनका सम्बन्ध वैज्ञानिक क्षेत्र से है। विज्ञान का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमें मुसलमानों ने अपनी ख़िदमतों को अंज़ाम न दिया हो। मुसलमानों के लिए इल्म के क्या मायने हैं, उसे क़ुरआन-ए-पाक ने अपनी पहली ही आयत में स्पष्ट कर दिया है। अतीत में मुसलमानों ने इसी आयते करीमा का पालन करते हुए वह स्थान प्राप्त कर लिया था जिसके बारे में आज कोई विचार नहीं कर सकता। क़ुरआन-ए-पाक व हदीस-ए-पाक पढ़ें, समझें और उस पर अमल करें। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मजबूती के साथ ताल्लुक जोड़ें।
चिंगी शहीद तुर्कमानपुर के जलसे में नायब क़ाज़ी मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी, मौलाना मकसूद आलम मिस्बाही व कारी शराफ़त हुसैन क़ादरी ने कहा कि आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की लाइब्रेरी में आज भी मुस्लिम विद्वानों की पुस्तकों के लातिनी और दूसरी यूरोपीय भाषाओं में किए गए अनुवाद मौजूद हैं। यूरोप वालों ने अल्पदृष्टि का परिचय देते हुए मुसलमानों के अरबी नामों को लातीनी में बदल दिया ताकि मुसलमानों को कभी पता न चले कि हमने विज्ञान और कला के क्षेत्र में क्या कारनामे अंज़ाम दिए। जिन लोगों के नाम बदले गए उनमें इब्ने सीना, इब्नुल हैसम, जाबिर बिन हैयान, ज़करिया अल राजी, अल जरकावी, इब्ने रुश्द, अबू बक़्र इब्ने बाजह आदि के नाम शामिल हैं। नाम इसलिए बदले गए ताकि आने वाली नस्लें यह न समझें कि मुसलमानों में इतने महान खोजकर्ता और वैज्ञानिक गुजरे हैं जिनकी जलाई इल्म की रौशनी से चौदहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी में यूरोप में पुनर्जागरण व धार्मिक विपलव जैसे आंदोलन चले और आज यूरोप विकास और सभ्यता के शिखर पर पहुंचा।
रहमतनगर के जलसे में सालेहपुर के सैयद हमजा अशरफ़ व मौलाना अली अहमद ने अवाम से कहा कि अगर अपनी और अपने बच्चों की भलाई चाहते हो तो आधी रोटी खाओ और अपने बच्चों को पढ़ाओ। याद रखो बिना तालीम के दुनिया में कोई तरक्की हासिल नहीं कर सकता। आपसी मतभेद और दुश्मनी को खत्म करो, आपस में मोहब्बत का माहौल पैदा करो। एक दूसरे के लिए मददगार बन जाओ।
जलसे का समापन सलातो सलाम पर हुआ। हिन्दुस्तान में अमन, शांति व खुशहाली की दुआ मांगी गई। जलसे में मौलाना इसहाक, मो. आसिफ, मो. अनस, मो. दारैन, शेर नबी निज़ामी, हाफ़िज़ यासीन, अली गजनफर शाह अज़हरी, रेयाज, अज़ीम, नाज़िम, क़ासिम, यासीन, अराफात, युसूफ, रय्यान, मो. अफ़रोज़ क़ादरी, हाफ़िज़ मो. आतिफ रज़ा, आरिफ आदि ने शिरकत की।