अयोध्या – श्री राम लला गुरुकुल वेद पाठशाला अयोध्या धाम में गीता जयंती उत्सव उल्लासपूर्वक मनाया गया।भगवान की पूजन के साथ आचार्यों और बटुकों द्वारा गीताजी का पाठ किया गया।मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि यानी मोक्षदा एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र में गीता का उपदेश दिया था।इसी वजह से हर साल इसी तिथि पर गीता जयंती मनाई जाती है।इस मौके पर गुरुकुल के आचार्य अभिषेक तिवारी ने कहा कि हिंदू धर्म में गीता जयंती का विशेष महत्व है।इस दिन को पवित्र भगवद्गीता के ज्ञान का उत्सव माना जाता है।इसी दिन श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म,धर्म और भक्ति का मार्ग दिखाया था। जो कि हर व्यक्ति के जीवन जीने की कला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।भगवद्गीता का संवाद महाभारत के युद्ध के दौरान हुआ था।जब अर्जुन ने युद्ध में भाग लेने से इंकार कर दिया था।तब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्तव्य का बोध कराते हुए गीता का उपदेश दिया था।गीता के उपदेश न केवल अर्जुन के लिए बल्कि पूरे मानव समाज के लिए एक अमूल्य धरोहर हैं।गीता जी के अठारह अध्यायों में भगवान ने मानव जीवन की समस्याओं का समाधान बताया है।जिनमें कर्म योग,भक्ति योग और ज्ञान योग का वर्णन किया है।गीता में लिखे प्रत्येक श्लोक मनुष्य का कल्याण करने में मददगार है।गीता का हर एक श्लोक भगवान श्रीकृष्ण के मुख से निकला है।कलयुग में गीता के उपदेश जीवन जीने का ढंग सिखाती है।गीता जी वेदों और उपनिषदों का सार तथा इस लोक और परलोक दोनों में मंगलमय मार्ग दिखाने वाला कर्म,ज्ञान और भक्ति तीनों मार्गों द्वारा मनुष्य के परम कल्याण के साधन का उपदेश करने वाला अद्भुत ग्रंथ है।गीताजी में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देकर कर्म का बोध कराए है। श्रीमद्भागवत गीता मानव जीवन को भी कर्म का बोध कराने वाली सर्वोच्च ग्रंथ है।कर्म की व्याख्या करते हुए भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कर्म करो फल की इच्छा मत रखो।कोई भी कर्म फल के लिए नहीं किया जाना चाहिए।श्रीमद्भागवत गीता में श्रीकृष्ण जी कहते हैं –
कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि।